मेरे स्नेही जन

Saturday, July 6, 2013

अलादीन का चिराग


अलादीन का चिराग,माँ

अगर मुझे मिल जाता

बैठ कंधे पर जिन्न के

सारी दुनिया घूम के आता


अलमस्त पक्षी सा कभी

आसमान में उड़ जाता

तारों से बातें करता कभी

चंदा से हाथ मिलाता


लुका छिपी खेल-खेल में

बादलों में छिप जाता

कितना भी ढ़ूँढ़ती मुझे

मैं हाथ कभी न आता


चंदा मामा के घर जाता

बूढ़ी नानी से मिल आता

कितना मजा आता ,माँ

जो चाहूँ वो मिल जाता


“हुकुम मेरे आका”, कह वो

पलक झपकते ही आजाता

सारी दुनिया की खुशियों से

झोली मेरी भर जाता


अलादीन का चिराग,माँ

अगर मुझे मिल जाता

बैठ कंधे पर जिन्न के

सारी दुनिया घूम के आता



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महेश्वरी कनेरी